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अग्ने॒ स्वाहा॑ कृणुहि जातवेद॒ऽ इन्द्रा॑य ह॒व्यम्। विश्वे॑ दे॒वा ह॒विरि॒दं जु॑षन्ताम् ॥२२ ॥

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पद पाठ

अग्ने॑। स्वाहा॑। कृ॒णु॒हि॒। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। इन्द्रा॑य। ह॒व्यम्। विश्वे॑। दे॒वाः। ह॒विः। इ॒दम्। जु॒ष॒न्ता॒म् ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) विद्या में प्रसिद्ध (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! आप (इन्द्राय) उक्त ऐश्वर्य के लिये (स्वाहा) सत्य वाणी और (हव्यम्) ग्रहण करने योग्य पदार्थ को (कृणुहि) प्रसिद्ध कीजिये (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (इदम्) इस (हविः) ग्रहण करने योग्य उत्तम वस्तु को (जुषन्ताम्) सेवन करें ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ऐश्वर्य बढ़ाने के लिये प्रयत्न करें तो सत्य परमात्मा और विद्वानों का सेवन किया करें ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अग्ने) विद्वन् (स्वाहा) सत्यां वाचम् (कृणुहि) कुरु (जातवेदः) प्रकटविद्य (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (हव्यम्) आदातुमर्हम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (हविः) ग्राह्यं वस्तु (इदम्) (जुषन्ताम्) सेवन्ताम् ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जातवेदोऽग्ने ! त्वमिन्द्राय स्वाहा हव्यं कृणुहि, विश्वे देवा इदं हविर्जुषन्ताम् ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्या ऐश्वर्यवर्द्धनाय प्रयतेरंस्तर्हि सत्यं परमात्मानं विदुषश्च सेवेरन् ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे ऐश्वर्य वाढविण्यासाठी प्रयत्न करू इच्छितात त्यांनी सत्य, परमेश्वर व विद्वानांची कास धरावी.